Friday, May 22, 2009

बरस बरबस

बस बरस जा अब
घुटन को घटा घटा से
छिपा-छिपी बंद कर छपाक से
जल से ज्वाला की जला दे

पतझड़ के पुराने पेडों-झाडों पे
टूटे तिनकों, तितलियों, ततैयों को,
खुले नीले आकाश की नज़रों से
कर ओझल फुसलाकर नहलाकर
धर दे धरा पर धीमे से बचाकर

गिरें तो गिरें माटी पे
कम से कम चखें
इस दवा का स्वाद
बस बरस जा अब

Wednesday, May 20, 2009