Friday, September 23, 2011

आज मैं देखता हूँ

आज मैं देखता हूँ
खुद को खुद की निगाहों से 

दूसरों को तो बहुत देखा
कभी उन्हें चाहा कभी किया अनदेखा 

दूसरे  भी मुझे देखते हैं
कभी मुस्कुराते कभी घूरते हैं

यूँ ही देखते देखते मैं उनकी 
और वे मेरी आँखों में देखते हैं

कुछ मैं सोचता हूँ, कहता हूँ 
कुछ वे सोचते, कहते हैं

थोड़ा मैं उन्हें समझता हूँ
थोड़ा वे मुझे समझते हैं

फिर पूछता हूँ मैं खुद से
क्या हम खुद को समझते हैं

क्या मैं खुद को समझता हूँ
क्या मैं खुद को देखता हूँ
खुद की निगाहों से

आज मैं देखता हूँ
खुद को खुद की निगाहों से

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