आज मैं देखता हूँ
खुद को खुद की निगाहों से
दूसरों को तो बहुत देखा
कभी उन्हें चाहा कभी किया अनदेखा
दूसरे भी मुझे देखते हैं
कभी मुस्कुराते कभी घूरते हैं
यूँ ही देखते देखते मैं उनकी
और वे मेरी आँखों में देखते हैं
कुछ मैं सोचता हूँ, कहता हूँ
कुछ वे सोचते, कहते हैं
थोड़ा मैं उन्हें समझता हूँ
थोड़ा वे मुझे समझते हैं
फिर पूछता हूँ मैं खुद से
क्या हम खुद को समझते हैं
क्या मैं खुद को समझता हूँ
क्या मैं खुद को देखता हूँ
खुद की निगाहों से
आज मैं देखता हूँ
खुद को खुद की निगाहों से
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