Thursday, November 17, 2011

बूँद

बारिश की वो पहली बूँद,
जो शीशे पे सरसराती हुई,
ख़ुशी से पत्तों के बीच फिसलती हुई,
असीम आसमान की सारी असीमता समेटे हुए,
पर्वत की मांग में बहते झरने पे टपकती हुई,
कलियों की गलियों में ताजगी भरती हुई,
मेरे माथे को छूकर मेरे मन में बस गयी,
वो हो तुम| 

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