रेत की आंधी
खुली आँखें
आगे बढ़ना है।
चिलचिलाती धूप
नंगे तलवे
रास्ता तय करना है।
चुभता पसीना
सूखी प्यास
चलते रहना है।
चार दिशाएँ
चिथड़ों में नक्शा
वहाँ पहुँचना है।
न कोई पास
न मदद की आस
अकेले तय करना है।
मिट्टी का आकाश
मिट्टी की हवा
मिट्टी को जीतना है।
शक्तिहीन तन
दुखती टांगें
मीलों को पीछे छोड़ना है।
मन में एक आग
आँखों में नशा
हर हाल में करना है।
पर क्यूँ
कौन हूँ मैं
आखिर क्या करना है?
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Friday, October 12, 2007
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