खुली दिशाओं में सिमटा
हुआ असीम पानी
नीले आसमान से नीला
ये छलकता पानी
मैं भी इसी सागर की
एक लहर ही तो हूँ
पानी से बना
पानी में सना
एक हथेली भर ही तो हूँ
काश मैं सागर होता
लहर भी होता
सागर भी होता
यहाँ भी होता
वहाँ भी होता
मेरा कोई किनारा न होता
आज इस सागर के अहसास में
फैल रहा मेरे मन का सागर
पूछ रहा मैं खुद से
कहीं मैं सागर तो नहीं
कहीं लहर में सीमित
मैं असीमित तो नहीं
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